Hindi Literature
Advertisement
http://www.kavitakosh.orgKkmsgchng
































CHANDER

इतने बड़े अध:पतन की ख़ुशी
उन आँखों में देखी जा सकती है
जो टंगी हुई हैं झरने पर
ऊँचाई हासिल करके झरने की तरह गिरना हो सके तो हो जाए
गिरना और मरना भी नदी हो जाए
जीवन फिर चल पड़े
मज़ा आ जाए


जितना मैं निम्नगा* होऊंगा
और और नीचे वालों की ओर चलता चला जाऊंगा
उतना मैं अन्त में समुद्र के पास होऊंगा
जनसमुद्र के पास


एक दिन मैं अपार समुद्र से उठता बादल होऊंगा
बरसता पहाड़ों पर, मैदानों में
तब मैं अपनी कोई ऊँचाई पा सकूंगा
उजली गिरावट वाली दुर्लभ ऊँचाई


कोई गिरना, गिरने को भी इतना उज्ज्वल बना दे
जैसे झरना पानी को दूधिया बना देता है।

Advertisement