Hindi Literature
Register
Advertisement
http://www.kavitakosh.orgKkmsgchng
































CHANDER


आकाशी झील के किनारे

परदेशी झील के किनारे

पंखों कों चोंच में समेटे

बैठे बदराए बनपांखी।


सतरंगी गदराई छत से

बूंद-बूंद बिखरी मधुमाखी।

निकले पड़े छोड़ घर-दुवारे

कारे कजरारे बनजारे

कहां? आकाशी झील के किनारे


टूट गए धूप के खिलौने,

निमिया की छाया के नीचे।

अंकुर दो पत्तों को थामे,

सोया है पलकों को मीचे।

डूब गए चांद ओ' सितारे


तैर गए किरण के इशारे

कहां? आकाशी झील के किनारे

उठे-गिरे आंचल में गुमसुम

दुबक रही बिजली की हंसुली।

अलकों की चौखट को थामे

सिसक रही माथे की टिकुली।

रुकें भला कब तक जलधारे

काजर की कोर के सहारे

कहां? आकाशी झील के किनारे

Advertisement