Hindi Literature
Advertisement
http://www.kavitakosh.orgKkmsgchng
































CHANDER

सुनकर चीख दुखांत विश्व की

तरुण गिरि पर चढकर शंख फूँकती

चिर तृषाकुल विश्व की पीर मिटाने

गुहों में,कन्दराओं में बीहड़ वनों से झेलती

सिंधु शैलेश को उल्लासित करती

हिमालय व्योम को चूमती, वो देखो!

पुरवाई आ रही है स्वर्गलोक से बहती

लहरा रही है चेतना, तृणों के मूल तक
महावाणी उत्तीर्ण हो रही है,स्वर्ग से भू पर
भारत माता चीख रही है, प्रसव की पीर से
लगता है गरीबों का मसीहा गाँधी
जनम ले रहा है, धरा पर फिर से

अब सबों को मिलेगा स्वर्णिम घट से

नव जीवन काजीवन-रस, एक समान

कयोंकि तेजमयी ज्योति बिछने वाली है

जलद जल बनाकर भारत की भूमि

जिसके चरण पवित्र से संगम होकर

धरती होगी हरी,नीलकमल खिलेंगे फिर से

अब नहीं होगा खारा कोई सिंधु, मानव वंश के अश्रु से
क्योंकि रजत तरी पर चढकर, आ रही है आशा
विश्व -मानव के हृदय गृह को, आलोकित करने नभ से
अब गूँजने लगा है उसका निर्घोष, लोक गर्जन में
वद्युत अब चमकने लगा है, जन-जन के मन में
Advertisement