Hindi Literature
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CHANDER


कब दर्द का संवेग उठा?
कब शब्दों का जाल बुना?
कब लेखनी चली कागज़ पर?
कब यह पुस्तक का आकार बना?

कुछ पीडाएं थी इस धरती की?
जो मुझको झकझोरित करती थीं।
सिर्फ़ बस सिर्फ़ बयां करने को
मैंने कलम उठाई थी॥

प्राणी- मात्र की पीडा ही
मेरी रचना के आधार बने।
भावों के संवेग इतना आ जाते
मैं,मैं न रह जाती वे स्वयं लिख जाते॥

अन्तर्नाद आकुल-व्याकुल करता
तब मैं क्या-क्या लिख जाती
कुछ ऎसे ही पलों की
बस मैं साक्षी बन जाती॥

हैरान हूं खुद की रचनाएं देख
सोचा तो न था रचूंगी पुस्तक एक
यह सब मां शारदे का है आशीष
जो चाहती हूं बांटना,मैं सबके बीच॥

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