CHANDER
करूँ न याद अगर किस तरह भुलाऊँ उसे
ग़ज़ल बहाना करूँ और गुनगुनाऊँ उसे
वो ख़ार-ख़ार है शाख़-ए-गुलाब की मानिन्द
मैं ज़ख़्म-ज़ख़्म हूँ फिर भी गले लगाऊँ उसे
ये लोग तज़करे करते हैं अपने लोगों से
मैं कैसे बात करूँ और कहाँ से लाऊँ उसे
मगर वो ज़ूदफ़रामोश ज़ूद रंज भी है
के रूठ जाये अगर याद कुछ दिलाऊँ उसे
वही जो दौलत-ए-दिल है वही जो राहत-ए-जाँ
तुम्हारी बात पे ऐ नासिहो गँवाऊँ उसे
जो हमसफ़र सर-ए-मंज़िल बिछड़ रहा है "फ़राज़"
अजब नहीं कि अगर याद भी न आऊँ उसे