Hindi Literature
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CHANDER

कितनी बार तुम्हें देखा
पर आँखें नहीं भरीं।


सीमित उर में चिर-असीम

सौंदर्य समा न सका

बीन-मुग्ध बेसुध-कुरंग

मन रोके नहीं रुका

यों तो कई बार पी-पीकर

जी भर गया छका

एक बूँद थी, किंतु,

कि जिसकी तृष्णा नहीं मरी।


कितनी बार तुम्हें देखा
पर आँखें नहीं भरीं।


शब्द, रूप, रस, गंध तुम्हारी

कण-कण में बिखरी

मिलन साँझ की लाज सुनहरी

ऊषा बन निखरी,

हाय, गूँथने के ही क्रम में

कलिका खिली, झरी

भर-भर हारी, किंतु रह गई

रीती ही गगरी।


कितनी बार तुम्हें देखा
पर आँखें नहीं भरीं।
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