Hindi Literature
Register
Advertisement
http://www.kavitakosh.orgKkmsgchng
































CHANDER

राग शुद्ध सारंग


चालो अगमके देस कास देखत डरै।
वहां भरा प्रेम का हौज हंस केल्यां करै॥

ओढ़ण लज्जा चीर धीरज कों घांघरो।
छिमता कांकण हाथ सुमत को मूंदरो॥

दिल दुलड़ी दरियाव सांचको दोवडो।
उबटण गुरुको ग्यान ध्यान को धोवणो॥

कान अखोटा ग्यान जुगतको झोंटणो।
बेसर हरिको नाम चूड़ो चित ऊजणो॥

पूंची है बिसवास काजल है धरमकी।
दातां इम्रत रेख दयाको बोलणो॥

जौहर सील संतोष निरतको घूंघरो।
बिंदली गज और हार तिलक हरि-प्रेम रो॥

सज सोला सिणगार पहरि सोने राखड़ीं।
सांवलियांसूं प्रीति औरासूं आखड़ी॥

पतिबरता की सेज प्रभुजी पधारिया।
गावै मीराबाई दासि कर राखिया॥

शब्दार्थ :- अगम =जहां पहुंच न हो, परमात्मा का पद। हंस = जीवात्मा से आशय है। केल्यां = क्रीड़ाएं। छिमता = क्षमा = दुलड़ी =दो लडोंवाली माला। दोबड़ो = गले में पहनने का गहना। अखोटा = कान का गहना। झोंटणों =कान का एक गहना। बेसर = नाक का एक गहना। ऊजणो =शुद्ध। जैहर = एक आभूषण। बिंदली =टिकुली। गज = गजमोतियों की माला। आखडी = टूट गई। राखडी = चूडामणि।

टिप्पणी :- परमात्मारूपी स्वामी से तदाकार होने के लिए मीराबाई ने इस पद में विविध श्रृंगारों का रूपक बांधा है, भिन्न-भिन्न साधनों का।

Advertisement