Hindi Literature
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CHANDER


माँ मुझे पहचान नहीं पाई

जब मैं घर लौटा

सर से पैर तक धूल से सना हुआ


माँ ने धूल पॊंछी

उसके नीचे कीचड़

जो सूखकर सख़्त हो गया था साफ़ किया


फिर उतारे लबादे और मुखौटे

जो मैं पहने हुए था पता नहीं कब से

उसने एक और परत निकालकर फेंकी

जो मेरे चेहरे से मिलती थी


तब दिखा उसे मेरा चेहरा

वह सन्न रह गई

वहाँ सिर्फ़ एक ख़ालीपन था

या एक घाव

आड़ी तिरछी रेखाओं से ढँका हुआ ।


(1989)

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