Hindi Literature
Register
Advertisement
http://www.kavitakosh.orgKkmsgchng
































CHANDER

राग प्रभाती


जागो म्हांरा जगपतिरायक हंस बोलो क्यूं नहीं॥
हरि छो जी हिरदा माहिं पट खोलो क्यूं नहीं॥

तन मन सुरति संजोइ सीस चरणां धरूं।
जहां जहां देखूं म्हारो राम तहां सेवा करूं॥

सदकै करूं जी सरीर जुगै जुग वारणैं।
छोड़ी छोड़ी लिखूं सिलाम बहोत करि जानज्यौ।
बंदी हूं खानाजाद महरि करि मानज्यौ॥

हां हो म्हारा नाथ सुनाथ बिलम नहिं कीजिये।
मीरा चरणां की दासि दरस फिर दीजिये॥

शब्दार्थ :- छो =हो। सदकै = न्योछावर। वारणै =न्योछावर कर दूं। सिलाम =सलाम। बन्दी =दासी। खाना-जाद =जन्म से ही घर में पली हुई। महरि =मेहर कृपा। मानज्यौ =मान लेना।

Advertisement