Hindi Literature
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CHANDER

उधर जिधर आसमान में घने बादल थे

और बिजली थी

जिधर हवाओं का शोर था

मैदान में पेड़ों की तरह उग आई लहलहाती घास थी

उधर ही मेरा मन था अबाध कब से कुछ सोचता हुआ


साथ में कुछ और न था

बस एक हल्की ख़ुशी थी चीज़ों के यूँ होने की

एक झुरझुरी बदन में जाने कैसी

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