Hindi Literature
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CHANDER

भोर आई थी मेंहदी रचा हाथ में, साँझ आई दुलहन की तरह से सजी
मेघ-मल्हार गाते गगन की गली एक दरवेश सा आ गया श्याम घन
आई बैठी हुई पालकी में निशा, अपनी लहराती चूनर सितारों भरी
तुम न आये मगर, है अधूरा रहा, देहरी के नयन में संवरता सपन

होली आई थी, आकर चली भी गई, तीज सूनी गई, सूना सावन रहा
अर्थ गणगौर को कुछ नहीं मिल सका, डूब कर पीर में गाता आँगन रहा
दीप दीपावली के कुहासों घिरे, लौ जली तो मगर लड़खड़ा लड़खड़ा
तुम न आये, बँधा नाग के पाश से मेरी अँगनाई का पीत चन्दन रहा

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