हरे चरहिं, तापाहं बरे, फरें पसारही हाथ।
तुलसी स्वारथ मीत सब परमारथ रघुनाथ।।
सामग्री
- १ आवत ही हर्षे नही नैनन नही सनेह!
- २ तुलसी तहां न जाइए कंचन बरसे मेह!!
- ३ तुलसी मीठे बचन ते सुख उपजत चहु ओर
- ४ बसीकरण एक मंत्र है परिहरु वचन कठोर!
- ५ बिना तेज के पुरूष अवसि अवज्ञा होय!
- ६ आगि बुझे ज्यों राख़ की आप छुवे सब कोय!!
- ७ तुलसी साथी विपत्ति के विद्या, विनय, विवेक!
- ८ साहस सुकृति सुसत्य व्रत राम भरोसे एक!!g
- ९ काम क्रोध मद लोभ की जो लौ मन मैं खान!
- १० तौ लौ पंडित मूरखों तुलसी एक समान!!
- ११ राम नाम मनि दीप धरु जीह देहरी द्वार!
- १२ तुलसी भीतर बहारों जौ चाह्सी उजियार!!
- १३ नाम राम को अंक है , सब साधन है सून!
- १४ अंक गए कछु हाथ नही, अंक रहे दस गून!!
- १५ प्रभु तरु पर, कपि डार पर ते, आपु समान!
- १६ तुलसी कहूँ न राम से, साहिब सील निदान!!
- १७ हरे चरहिं, तापाहं बरे, फरें पसारही हाथ!
- १८ तकतुलसी स्वारथ मीत सब परमारथ रघुनाथ!!
- १९ तुलसी हरि अपमान तें होई अकाज समाज!
- २० राज करत रज मिली गए सकल सकुल कुरुराज!!
- २१ राम दूरि माया बढ़ती , घटती जानि मन मांह !
- २२ भूरी होती रबि दूरि लखि सिर पर पगतर छांह !!
- २३ राम राज राजत सकल धरम निरत नर नारि!
- २४ राग न रोष न दोष दुःख सुलभ पदारथ चारी!!
- २५ चित्रकूट के घाट पर भई संतन की भीर !
- २६ तुलसीदास चंदन घिसे तिलक करे रघुबीर!!
- २७ तुलसी भरोसे राम के, निर्भय हो के सोए!
- २८ अनहोनी होनी नही, होनी हो सो होए!!
- २९ नीच निचाई नही तजई, सज्जनहू के संग!
- ३० तुलसी चंदन बिटप बसि, बिनु बिष भय न भुजंग !!
- ३१ ब्रह्मज्ञान बिनु नारि नर कहहीं न दूसरी बात!
- ३२ कायर, क्रूर , कपूत, कलि घर घर सहस अहार !!
- ३३ तुलसी पावस के समय धरी कोकिलन मौन!
- ३४ अब तो दादुर बोलिहें हमें पूछिहे कौन!!
- ३५ मनि मानेक मंv,b kbnbhnn हगे किए सहेंगे तृण, जल, नाज!
- ३६ तुलसी एते जानिए राम गरीब नेवाज!!
- ३७ होई भले के अनभलो,होई दानी के सूम!
- ३८ ोई कपूत सपूत के ज्यों;
आवत ही हर्षे नही नैनन नही सनेह![]
तुलसी तहां न जाइए कंचन बरसे मेह!![]
तुलसी मीठे बचन ते सुख उपजत चहु ओर[]
बसीकरण एक मंत्र है परिहरु वचन कठोर![]
बिना तेज के पुरूष अवसि अवज्ञा होय![]
आगि बुझे ज्यों राख़ की आप छुवे सब कोय!![]
तुलसी साथी विपत्ति के विद्या, विनय, विवेक![]
साहस सुकृति सुसत्य व्रत राम भरोसे एक!!g[]
काम क्रोध मद लोभ की जो लौ मन मैं खान![]
तौ लौ पंडित मूरखों तुलसी एक समान!![]
राम नाम मनि दीप धरु जीह देहरी द्वार![]
तुलसी भीतर बहारों जौ चाह्सी उजियार!![]
नाम राम को अंक है , सब साधन है सून![]
अंक गए कछु हाथ नही, अंक रहे दस गून!![]
प्रभु तरु पर, कपि डार पर ते, आपु समान![]
तुलसी कहूँ न राम से, साहिब सील निदान!![]
हरे चरहिं, तापाहं बरे, फरें पसारही हाथ![]
तकतुलसी स्वारथ मीत सब परमारथ रघुनाथ!![]
तुलसी हरि अपमान तें होई अकाज समाज![]
राज करत रज मिली गए सकल सकुल कुरुराज!![]
राम दूरि माया बढ़ती , घटती जानि मन मांह ![]
भूरी होती रबि दूरि लखि सिर पर पगतर छांह !![]
राम राज राजत सकल धरम निरत नर नारि![]
राग न रोष न दोष दुःख सुलभ पदारथ चारी!![]
चित्रकूट के घाट पर भई संतन की भीर ![]
तुलसीदास चंदन घिसे तिलक करे रघुबीर!![]
तुलसी भरोसे राम के, निर्भय हो के सोए![]
अनहोनी होनी नही, होनी हो सो होए!![]
नीच निचाई नही तजई, सज्जनहू के संग![]
तुलसी चंदन बिटप बसि, बिनु बिष भय न भुजंग !![]
ब्रह्मज्ञान बिनु नारि नर कहहीं न दूसरी बात![]
कायर, क्रूर , कपूत, कलि घर घर सहस अहार !![]
तुलसी पावस के समय धरी कोकिलन मौन![]
अब तो दादुर बोलिहें हमें पूछिहे कौन!![]
मनि मानेक मंv,b kbnbhnn हगे किए सहेंगे तृण, जल, नाज![]
तुलसी एते जानिए राम गरीब नेवाज!![]
होई भले के अनभलो,होई दानी के सूम![]
ोई कपूत सपूत के ज्यों;[]