Hindi Literature
Advertisement
http://www.kavitakosh.orgKkmsgchng
































CHANDER

राग प्रभाती

थे तो पलक उघाड़ो दीनानाथ,मैं हाजिर-नाजिर कद की खड़ी॥
साजणियां दुसमण होय बैठ्या, सबने लगूं कड़ी।
तुम बिन साजन कोई नहिं है, डिगी नाव मेरी समंद अड़ी॥
दिन नहिं चैन रैण नहीं निदरा, सूखूं खड़ी खड़ी।
बाण बिरह का लग्या हिये में, भूलुं न एक घड़ी॥
पत्थर की तो अहिल्या तारी बन के बीच पड़ी।
कहा बोझ मीरा में करिये सौ पर एक धड़ी॥

शब्दार्थ :- कड़ी = कड़वी। डिगी = डगमगा गई। समंद = समुद्र। निदरा = नींद। सौ पर एक धड़ी = कहां तो वजन सौ सेर का, और कहां पांच सेर का।

Advertisement