Hindi Literature
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साँचा:KKAnooditRachna

देख लूँ

मैं यह दुनिया

कुछ और दिन


देख लूँ

बच्चों को

और यह हिम


मुस्कान

मेरी सच्ची है

जैसे यह राह


नौकर

नहीं है वह मेरी

कोई बच्ची है गुमराह


(रचनाकाल : दिसम्बर 1936-1938(?)

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