Hindi Literature
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CHANDER


नहीं मिन्नत-कश-ए-ताब-ए-शनीदन दास्ताँ मेरी
ख़ामोशी गुफ़्तगू है, बेज़ुबानी है ज़बाँ मेरी

ये दस्तूर-ए-ज़बाँ-बंदी है कैसी तेरी महफ़िल में
यहाँ तो बात करने को तरस्ती है ज़बाँ मेरी

उठाये कुछ वरक़ लाला ने कुछ नरगिस ने कुछ गुल ने
चमन में हर तरफ़ बिखरी हुई है दास्ताँ मेरी

उड़ा ली कुमरियों ने तूतियों ने अंदलीबों ने
चमन वालों ने मिल कर लूट ली तर्ज़-ए-फ़ुगाँ मेरी

टपक ऐ शम आँसू बन के परवाने की आँखों से
सरापा दर्द हूँ हसरत भरी है दास्ताँ मेरी

इलाही फिर मज़ा क्या है यहाँ दुनिया में रहने का
हयात-ए-जाविदाँ मेरी न मर्ग-ए-नागहाँ मेरी

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