Hindi Literature
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CHANDER


कपड़े धोती

खाना बनाती

कमरों को चमकाती

बच्चों के पीछे पागल

तुम सिर्फ़ पत्नी नहीं हो

पूरा-का-पूरा घर हो

जहाँ मेरा अर्थ खुलता है

मेरा ठौर वहीं है

आगे-पीछे बहुत कुछ है

पर अनुराग से बँधा जीवन ही

थामता है

और दुनिया के बीच

मुझे धरता है


(रचनाकाल : 1990)

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