Hindi Literature
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CHANDER


दो प्यारे और भोले और निश्छल

बच्चों के बीच

सोई हुई है

गहरी नींद में

मेरे बेटों की माँ

मध्यरात्रि में

मैं उसके पास नहीं जाता

उसे नहीं जगाता

बस देखता भर हूँ

और एक मौन स्मिति

होंठों पर खिल उठती है


यह वही तो है जो दिन भर

फिरकी की तरह

बच्चों के साथ

घर-गृहस्थी में नाचती रहती है

मुझे भी बच्चे की तरह पालती है


दिन भर चैन से न बैठने वाली

कितनी शान्त और गहरी नींद में है

एक मिठास लिए

मेरा मन होता है

रात भर जागकर

उसे इसी मुद्रा में

देखता रहूँ


(रचनाकाल:1990)

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