Hindi Literature
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CHANDER

पल-पल के हिसाब वाले इन दिनों

यह अचरज की बात नहीं तो और क्या

कि आपकी बेटी के ब्याह में आपके बचपन का

कोई दोस्त अचानक आपकी बगल में

आकर खड़ा हो जाए।


न कोई रिश्तेदारी, न कोई मतलब

न कुछ लेना-देना, न चिट्ठी-पत्री

न कोई ख़बर

न कोई सेठ, न साहूकार

एक साधारण-सा आदमी

पाटता तीस-पैंतीस से भी ज्यादा बरसों की दूरी

खोजता-खोजता, पूछता-पूछता घर-मोहल्ला

वह भी अकेला नहीं, पत्नी को साथ लिए

सिर्फ़ दोस्त की बेटी के ब्याह में शामिल होने चला आया।


मैंने तो यूँ ही डाल दिया था निमंत्रण-पत्र

याद रहे आए पते पर जैसे एक

रख आते हैं हम गणेश जी के भी पास

कहते हैं बस इतना-सा करने से

सब काम निर्विघ्न निबट जाते हैं।


खड़े रहे हम दोनों थोड़ी देर तक

एक दूसरे का मुँह देखते

देखते एक दूसरे के चेहरे पर उग आई झुर्रियाँ

रोकते-रोकते अपने-अपने अन्दर की रुलाई

हम हँस पड़े

इस तरह गले मिले

मैं लिए-लिए फिरता रहा उसे

मिलवाता एक-एक से, बताता जैसे सबको

देखो ऐसा होता है

बचपन का दोस्त।


तभी किसी सयाने ने ले जाकर अलग एक कोने में

कान में कहा मेरे

बस, बहुत हो गया, ये क्या बचपना करते हो

रिश्तेदारों पर भी ध्यान दो

लड़की वाले हो, बारात लेकर नहीं जा रहे कहीं।


फिर ज़रा फुसफुसाती आवाज़ में बोले

मंडप के नीचे लड़की का कोई मामा आया नहीं

जाओ, मनाओ उन्हें

और वे तुम्हारे बहनोई तिवारी जी

जाने किस बात पर मुँह फुलाए बैठे हैं।


तब टूटा मेरा ध्यान और यकायक लगा

कैसी होती है बासठ की उम्र और कैसा होता है

इस उम्र में तीसरी बेटी को ब्याहना।


खा-पीकर चले गए रिश्तेदार

मान-मनौवले के बाद बड़े-बूढ़े मानदान

ऊँचे घरों वाले चले गए अपनी-अपनी घोड़ा गाडि़यों

और तलवारों-भालों की शान के साथ।


बेटी को विदा कर रह गया अकेला मैं

चाहता था थोड़ी देर और रहना बिलकुल अकेला

तभी दोस्त ने हाथ रखा कंधे पर

और चुपचाप अपना बीड़ी का बंडल

बढ़ा दिया मेरी तरफ़

और मेरे मुँह से निकलते-निकलते रह गया

अरे, तू कब आया ?

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