Hindi Literature
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CHANDER

धब्बों भरी एक चीख़

अटकी मिली

मृतक के स्वरयंत्र में

टूटे हुए

शब्दों

में

लिपटी


जो जकड़ा था इर्द-गिर्द उसके

श्लेष्मा की तरह

वह किश्तों में निगला

भय था लगभग प्रस्तरीभूत

जिसने उसके सारे कहे को

नागरिक बनाया था जीवन भर


उसके विराट और

महान

लोकतंत्र की सेवा में

(रचनाकाल : 1967)

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