Hindi Literature
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CHANDER


जब से

देखा तुमको

भूल नहीं पाया हूँ


जबसे देखा

मुझे लगी बेहद अपनी-सी

आंखों को पहचान दिलाती

भौं, पिपनी सी

एकाकीपन में भी

खुलकर

मुसकाया हूँ


तुम्हें देखकर ही

रंगों का अर्थ मिला है

मन के भीतर वनतुलसी का

बाग खिला है

खुशबू की

उठती तरंग-सा

लहराया हूँ


तुम्हें देखकर

दुनिया का मतलब जाना है

स्वाद, गंध, ध्वनि, रूप, छुअन को

पहचाना है

तृप्त हुआ

जीकर जीवन का

सरमाया हूँ

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