Hindi Literature
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CHANDER

वनस्पतियों को दुलारती रहती हैं हवाएँ

ज़मीन की ओर देख कर कहता हूँ--माँ

ज़मीन नहीं कहती--हाँ


खेतों से लौट कर

गाँव के ओने-कोने में खोजती थीं मुझे

दो तरल आँखें

ओझल हो गईं

खुरदरी हथेलियाँ

जिनकी पहुँच से दूर होता रहा मैं


हथेलियाँ

जिन्होंने घर की दीवारों को

माटी-गोबर से

जीवन भर लीपा था


ओबरे में दूर तक सँवारा था

हमारा संसार

कंडी में रोटियाँ

कटोरी में सब्ज़ी

सुनसान रातों में

अब मेरा इन्तज़ार नहीं करतीं ।

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