Hindi Literature
Register
Advertisement
http://www.kavitakosh.orgKkmsgchng
































CHANDER

राग बागेश्री


मैं बिरहणि बैठी जागूं जगत सब सोवे री आली॥

बिरहणी बैठी रंगमहल में, मोतियन की लड़ पोवै|
इक बिहरणि हम ऐसी देखी, अंसुवन की माला पोवै॥

तारा गिण गिण रैण बिहानी , सुख की घड़ी कब आवै।
मीरा के प्रभु गिरधर नागर, जब मोहि दरस दिखावै॥


शब्दार्थ :- बिरहणी =विरहनी। पोवै =गूंथती है। रैण =रात। बिहानी = बीत गयी।

Advertisement