Hindi Literature
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साँचा:KKAnooditRachna

यदि मुझे पकड़ लेंगे हमारे वे जानी दुश्मन

और मुझ से बात करना भी छोड़ देंगे सब जन

यदि मुझ से छीन लेंगे वे दुनिया के सारे सुख

और साँस भी न लेने देंगे, बन्द कर देंगे मुख

यदि मैं न कह पाऊंगा कि जीवन की होगी जीत

कि जनता ही होती है सदा महा-न्यायाधीश

यदि जानवरों की तरह वे मुझे रखेंगे बाड़े में बन्द

और ज़मीन पर फ़ेंकेंगे वे, भोजन के टुकड़े चन्द

चुप नहीं बैठूंगा तब भी मैं, चीखूंगा हर वक़्त

दर्द नहीं सहूंगा तब भी मैं, खौलेगा मेरा रक्त

तब रचूंगा मैं वह सब, जो उस वक़्त रच पाऊंगा

शत्रु के गले का फन्दा बन कर, जन को जगाऊंगा

मेरी आवाज़ में होगा तब भी दस बैलों का ज़ोर

खोद डालूंगा अपने हल से यह काली धरती कठोर

डरी हुई अपनी जनता की आँखों के गहरे सागर में

अत्याचारी प्रबल-दमन के तानाशाही महासागर में

सुरसुराए चाहे कितना ही अपनी धमकियों से लेनिन

मेधा और जीवन को मारे, चाहे कितना ही स्टालिन

यह कसम उठाता हूँ साथी मैं, तूफ़ान बन के आऊंगा

बचा सड़न से इस दुनिया को, फिर से नई बनाऊंगा


(रचनाकाल : 1937, वरोनिझ)

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