Hindi Literature
Advertisement
http://www.kavitakosh.orgKkmsgchng
































CHANDER


यह जो फूटा पड़ता है

हरा, पत्तों से--

धूप के आर-पार

वही फूट आता है

किसी और जगह,

किसी और सुबह ।


भरोसा है तो

इसी हरे का ।

Advertisement