CHANDER <poem>।। राग सोरठी।।
रे चित चेति चेति अचेत काहे, बालमीकौं देख रे। जाति थैं कोई पदि न पहुच्या, राम भगति बिसेष रे।। टेक।। षट क्रम सहित जु विप्र होते, हरि भगति चित द्रिढ नांहि रे। हरि कथा सूँ हेत नांहीं, सुपच तुलै तांहि रे।।१।। स्वान सत्रु अजाति सब थैं, अंतरि लावै हेत रे। लोग वाकी कहा जानैं, तीनि लोक पवित रे।।२।। अजामिल गज गनिका तारी, काटी कुंजर की पासि रे। ऐसे द्रुमती मुकती कीये, क्यूँ न तिरै रैदास रे।।३।।