Hindi Literature
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साँचा:KKAnooditRachna

लपट

नष्ट कर रही है

मेरे इस जीवन को


अब मैं

पत्थर के नहीं

काठ के गीत गाऊंगा


काठ हल्का होता है

होता है खुरखुरा

हृदय बलूत वृक्ष का

और चप्पू मल्लाह के लिए

उसके एक टुकड़े में ही

होता है धरा


अच्छी तरह

ठोंकिए शहतीर

हथौड़ा चलाइए

काठ के स्वर्ग में


जहाँ चीज़ें होती हैं

इतनी हल्की


(रचनाकाल : 1915)

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