Hindi Literature
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साँचा:KKAnooditRachna

ऊषा

अभी मेपल वृक्ष के

हाथों में थी

सो रही थी यूँ जैसे कोई

नन्हा शिशु हो

और चन्द्रमा झलक रहा था

इतना नाज़ुक

मेघों के बीच गुम हो जाने का

इच्छुक वो


गर्मी की

उस सुबह को पक्षी

घंटी जैसे घनघना रहे थे

नए उमगे पत्तों पर धूप

बिछल रही थी

और बेड़े पर पड़े हुए थे

मछली के ढेर

शुभ्र, सुनहरे कुंदन-से

वे चमचमा रहे थे

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