Hindi Literature
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CHANDER


शरीर से ज़्यादा

वह एक आकृति थी

उसे छूना

कुछ रेखाओं को अनुभव करना होता

उँगलियों के पोरों पर


छूते ही

वह हिल उठती

और जाते ही

जैसे कोई

निकलकर...चला...जाता दूर...।

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